जब भी कोई पूछे तो….
हमारे मुख से एक नाम तुरंत निकले,तब तो हम धन्य हैं। यदि हम निर्णय न ले पायें, तब हमकों बहुत विचार करना चाहिए।
ध्यान दें, सूर्य की कितनी ही प्रचंड किरणें क्यों न हों, सूखी घास तक को नहीं जला पातीं। जबकि कोई उत्तल लेंस उन किरणों को समेट कर,घास पर केंद्रित कर दे,तो घास गीली भी हो,तो भी आग पकड़ जाती है। इसी प्रकार हमारी श्रद्धा,जब तक किसी एक में न टिके, तब तक हमारी कर्म रूपी घास जले कैसे?
मेरे परम प्रियमित्रों! साधन तो प्रारंभ ही तब होगा, जब हमको मालूम हो कि हम हैं किस के?
देखो बुद्धि दो प्रकार की होती है, पतिव्रता बुद्धि और व्यभिचारिणी बुद्धि। जो एक की नहीं हुई……कभी किसी की,तो कभी किसी की हो जाती है, वह तो वेश्याबुद्धि है।
मीरा जी कहती हैं “मेरो तो गिरिधर गोपाल” दूसरो न कोई”
इस “दूसरो ना कोई” को समझो।
मनुष्य की कौन कहे? पशु भी दो प्रकार का है,जो किसी का है वही पालतू है, जो 36 दरवाजे माथा पटकता है,वह तो फालतू (आवारा ) है।
परमात्मा एक है,यह निर्विवाद सत्य है,वह कभी एक से सवा नहीं हुआ,दो की कौन कहे? वही एक संपूर्ण सृष्टि के कण कण में व्याप्त है, दूसरे परमात्मा के होने के लिए दूसरी सृष्टि चाहिए,वरना वह रहेगा कहाँ? उस एक अखंड अद्वैत अनाम अरूप परमात्मा को,एक नामरूप देकर अपना बना लेना,उसी का बार-बार चिंतन कर,अमूर्त को मूर्त कर प्रकट कर लेना,यही तो साधन है।
अभी निर्णय लो कि मृत्यु की रात,गले में बलगम फंसने पर
हम किस एक का नाम लेंगे……. ?