सकारात्मकता से ईष्ट कृपा

ईश्वर को  पाने के लिए किसी लंबी चौड़ी पूजा पाठ साधना की आवश्यकता नहीं है।

ईश्वर मिलता है सकारात्मकता से

सकारात्मकता से ही ईष्ट सिध्दि भी मिलती है

कैसे

सुन्दर कांड में श्रीरामजी स्वयं ही कह रहे हैं।

निर्मल मन जन सो मोहि पावा।

मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।

विभीषण जी सदैव ही सकारात्मक रहते थे

उनकी भी पूर्वाभास शक्ति बहुत अद्भुत  विलक्षण थी।

श्री हनुमान जब ब्राह्मण वेश मे उनके सम्मुख गये तब विभीषण जी कहते है।

की तुम्ह हरि दासन्ह मंह कोई

मोरे हृदय प्रीति अति होई

मुझे लग रहा है कि तुम श्रीहरि के सेवकों में से एक  हो।

तब हनुमान जी उन्हें अपने    वास्तविक रुप दिखाते हैं।

कारण एक ही है।

सकारात्मकता।

आगे जब,रावण उन्हें लात मार कर निष्कासित करते हैं तब भी वे सकारात्मक ही रहते हैं।

अपने भाग्य को नीयती को प्रारब्ध को सहर्ष स्वीकार कर कहते हैं।

तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा

रामु भेजें हित नाथ तुम्हारा

ईश्वर  आप को सद्बुद्धि दे

शबरी ने कोई पूजा पाठ नहीं की परंतु सकारात्मक रही।

एक दिन राम आयेंगे

ईश्वर की प्राप्ति असंभव है परन्तु दर्शन शीघ्र संभव है।

इसलिए सदैव सकारात्मक रहे

आप जितनी भक्ति , जितनी पूजा पाठ करते हैं ,वो आपको ईश्वर के निकट ले जाने लगती है।

और उस तक पहुंचते ही ईश्वर को अपने साथ लाने लगती है।

पूजा पाठ, भक्ति,साधना,जप तप यज्ञ सभी देवी-देवताओं को निरंतर दिये गये।

निमंत्रण मातरम है।

जितना आप चलते हैंउतना ही ईश्वर,ईष्ट  देवी देवता भी चलते हैं।

आप तो पहुंच ही नहीं पाते हैं।

आपके पहुंचने से पहले ही ईश्वर आप को मध्य मार्ग में स्वयं ही लेनै आ पहुंचता है।

ईश्वर ऐसा ही है।

ऐसा ही होता है।

यही सब करते रहता है।

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