दान और दक्षिणा मे अन्तर

प्रस्तुत पोस्ट मात्र जागरूकता के लिए है, यह किसी भी प्रकार से किसी से मांग की नही है ,हमारी दक्षिणा स्वेच्छा अनुसार ही है।

 

अक्सर देखा.गया है कि लोग पूजा करवाने के बाद दक्षिणा देने की बारी आने पर,पंडित से बहस और चिक -चिक करने लग जाते है…

 

लोग तर्क देेने लगते है कि दक्षिणा श्रद्धा से दी जाती है;

और पंडित को  “लोभी हो, लालची हो “,इस तरह की कई सारी बाते लोग बोलने लगते हैं,और अनावश्यक ही पंडित को असंतुष्ट कर अपने द्वारा की गई पूजा के पूर्ण फल से वंचित रह जाते है….क्योकि ब्राह्मणों की संतुष्टि महत्वपूर्ण है।

यहाँ एक और बात ब्राह्मण के लिए कहेंगे कि  ब्राह्मण को भी संतोषी स्वभाव का होना चाहिये..

 

अब हम “दान और दक्षिणा ” पर बात करते है..तो दान हमेशा श्रद्धानुसार किया जाता है, जबकि दक्षिणा अपनी सामर्थ्य के अनुसार.

 

जब हम मन मे किसी के प्रति श्रद्धा या दया के भाव से युक्त होकर बदले मे उस व्यक्ति से कोई सेवा लिये बिना,अपने मन की संतुष्टि के लिये उसे कुछ देते हैं उसे दान कहते है…

 

जबकि दक्षिणा पंडित को उसके द्वारा पूजा-पाठ करवाने के बाद उसे पारिश्रमिक के तौर पर दी जाती है,

 

अर्थात् -चूंकि यह पंडित का पारिश्रमिक है अतः उसे पूरा अधिकार है, कि वो आपकी दी गई दक्षिणा से संतुष्ट न होने पर और देने की मांग करे,

 

जैसे आप सब्जी लेते हैं, तो आप उसकी कीमत सब्जी वाले के अनुसार चुकाते हैं,बाल कटवाते हैं तो नाई के  द्वारा निर्धारित दर के अनुसार ही पैसे देते हैं..आप बाल कटवाने के बाद ये नही कहते कि इतने पैसे देने की मेरी श्रद्धा नही है,तुम ज्यादा मांग रहे हो, तुम लालची हो…

 

किसी भी व्यवसाय मे काम की दर पहले से निर्धारित होती है,केवल ब्राह्मण की वृत्ति ही बिना किसी सौदेबाजी के होती है क्योकि पंडित को  हर तरह के (अमीर -गरीब ) यजमान मिलते है। इसलिये दक्षिणा को आपकी शक्ति-सामर्थ्य के अनुसार रखा जाता है..ताकि संतुलन बना रहे और सभी अपने स्तर पर ईश्वर की उपासना का लाभ ले सकें..

 

क्योकि ईश्वर पर अधिकार गरीब का भी उतना ही है जितना किसी अमीर का है…भगवान की पूजा के लिये किसी की आर्थिक स्तिथि बीच में न आये इसलिये ही दक्षिणा यथाशक्ति देने का विधान है..

 

इसलिये दक्षिणा शक्ति के अनुसार ही देनी चाहिये,क्योकि पंडित, (ब्राह्मण ) को भी इस मंहगाई मे परिवार पालना बहुत ही मुश्किल होता है,और यही उसकी आजीविका है।

 

मान लीजिये आप लखपति है,साल मे कभी एक बार पूजा करवा रहे है। और ब्राह्मण को दक्षिणा के नाम पर सौ रूपये पकड़ा रहे है,तो क्या सौ रूपये देने लायक ही शक्ति है क्या आपमे……. ?

 

आप ब्राह्मण को तो धोखा दे देंगे,लेकिन आप भगवान को धोखा नही दे सकते।

क्योकि भगवान आपको आपके मनोभावों के अनुसार ही आपको पूजा का फल दे देते है ,क्योकि संकल्प ही यथाशक्ति दक्षिणा का करवाया जाता है। अर्थात आप अपनी क्षमता से  कम देकर एक तरह का झूठ भगवान के सामने दिखाते है,और भगवान आपको तथास्तु कह देते है।

 

इसलिये कोशिश करें,कि आपकी दक्षिणा से ब्राह्मण संतुष्ट हो जायें,

 

हाँ दान ,आप स्वेच्छा सेे करें,

दान के लिये पंडित को अधिकार नही होता कि वो इसे,कम या ज्यादा देने को कहे।

 

अर्थात दान उसे कहेंगे कि मान लीजिये पंडित आपके घर आये है,और आप श्रद्धा से उसे कुछ भेंट करें, वो दान है।

 

या आप पंडित से बिना कोई कोई पूजा पाठ करवाये, किसी निमित्त उनके यहां पहुंचाने जाते है,वो दान है।

तब आज तक आपको किसी पंडित ने नही कहा होगा कि थोड़ा और लाते

 

यदि कोई पंडित इस “दान” पर बोले तो उसे भले ही लोभी समझे, लेकिन दक्षिणा के लिये, और दक्षिणा की मांग करने वाले ब्राह्मण को लालची न कहें,और ना ही समझें

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